उत्तराखंड का 'पिरूल लाओ-पैसा पाओ' अभियान
| पहलू | विवरण | |------------------------------|-----------------------------------------------------------------------------| | कार्यक्रम | पिरूल लाओ-पैसे पाओ अभियान का शुभारंभ | | स्थान | उत्तराखंड, भारत | | शुभारंभ तिथि | 8 मई, 2024 | | शुभारंभकर्ता | मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी | | शुभारंभ जिला | रुद्रप्रयाग | | उद्देश्य | सूखे पिरूल (चीड़ के पत्ते) एकत्रित कर वनाग्नि पर नियंत्रण पाना | | भागीदारी | सहकारी समितियाँ, युवा मंगल दल, और वन पंचायत | | संग्रह केंद्र | तहसीलदार द्वारा प्रबंधित, एसडीएम की निगरानी में | | भुगतान | 50 रुपये प्रति किलो पिरूल, सीधे बैंक खातों में हस्तांतरित | | पिरूल उपयोग | पैक, प्रसंस्कृत और उद्योगों को बेचा जाता है | | आर्थिक संभावना | पिरूल का उपयोग बिजली संयंत्रों में; 200 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता | | वार्षिक पिरूल उत्पादन | 23 लाख मीट्रिक टन | | अभियान का बजट | उत्तराखंड सरकार द्वारा 50 करोड़ रुपये आवंटित | | निगरानी | उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड | | वन आच्छादन डेटा | कुल दर्ज वन क्षेत्र: 24,305 वर्ग किमी (राज्य के 45.44% क्षेत्र में) | | वन घनत्व | अति घना: 5,055 वर्ग किमी; मध्यम घना: 12,768 वर्ग किमी; खुला: 6,482 वर्ग किमी | | चीड़ के वृक्षों की उपस्थिति| अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली, चंपावत, देहरादून, गढ़वाल, नैनीताल, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी जिलों में प्रचुर मात्रा में |

